*626 मैं देखूं थारी नगरी अजब योगीराज।।626।।
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मैं देखूं थारी नगरी अजब योगीराज।।घर उजाड़ हो आपना जी लिए मरेडा हाथ।
अपना भी घर फूंक के चलो हमारे साथ।।
घर छोडूं घर होता है रे, घर रखूं घर नाए।
जो घर ही में घर करें, ता को कॉल ना खाए।।
अंधे को अंधा मिला लोचन फूटे चार।
प्रेम गली में सतगुरु मिल गए गोदी लिए उठाए।।
अब के सेवक तब के ठाकुर संतो करो विचार।
कह रविदास सुनो भाई साधो देखा नजर निहार।।
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