*662 भज हंसा सत्तनाम।।662।।
662
भज हंसा हरि नाम, जगत में जीवन थोड़ा रे।।
काया आई पावनी रे, हंस आए महमान।
पानी केरा बुलबुला, तेरा थोड़ा सा उनमान।
बना कागज का घोड़ा रे।।
मातपिता भाई सुत बन्धु, और तेरी दुल्हन नार।
मिले यहीँ बिछड़े सभी रे, ये शोभा दिन चार।
बना दो दिन का दौड़ा रे।।
सोऊं सोऊं क्या करे रे, सोवत आवै नींद।
यम सिरहाने यूँ खड़ा रे, ज्यूँ तोरण पे बीन।
खिंचा जैसे ताजी घोड़ा रे।।
राम भजन की हंसी करते, मन में राखे पाप।
पेट पलनियाँ वे चलें रे, ज्यूँ वन जंगल का सांप।
नेह जिन हरि से तोड़ा रे।।
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