*625 मरहम हो सोय जाणै।।625।।.
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मरहम हो सोय जाणै भाई साधो, ऐसा है देश हमारा जी।
वेद कितेब पार नहीं पावै, कहन सुनन से न्यारा जी।
जात वर्ण कुल क्रिया नाहीं, सन्ध्या नेम अचारा जी।।
बिन जल बूँद पड़ै जहां भारी, नहीं मीठा नहीं खारा जी।
सुन्न महल में नोबत बाजें, किंगरी बीन सितारा जी।।
बिन बादल जहां बिजली रे चमकै,
बिन सूरज उजियाला जी।
बिना सीप जहाँ मोती उपजें,
बिन सुर शब्द उचारा जी।।
जोत लजाए ब्रह्म जहां दरसै, आगे अगम अपारा जी।
कह कबीर वहाँ रहन हमारी, बुझै गुरू मुख प्यारा जी।।
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