*614 साधो! चुप का है निस्तारा।।614।।
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साधो ! चुप का है निस्तारा।क्या कहूँ कुछ कह न सकूँ मैं, अदभुत है संसारा।।
अगमा चुप है निगमा चुप है, चुप है जन जग सारा।
धरती चुप है गगना चुप है, चुप है जल परवाहरा।।
पवना पावक सूरज चुप है, चुप है चाँद और तारा।
ब्रह्मा चुप है विष्णु चुप है, चुप है शंकर प्यारा।।
पहले चुप थी पीछे चुप है, चुप है सिरजनहारा।
ब्रह्मानन्द तूँ चुप में चुप हो, चुप में कर दीदारा।।
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