*661 पूर्णगढ़ चल भाई।।661।।
661
पूर्णगढ़ चल भाई, हंसा रे पूर्णगढ़।।
कच्चा कोट पक्का दरवाजा, गहरी जंजीर लगाई।
मस्ता हाथी आए झुकावै, दुर्मत लेत लड़ाई।।
ज्ञान ध्यान दो अनी रे बराबर, ये दो अदल सिपाही।
हृदय ढाल राख कर सिमरन, यम की चोट बचाई।।
कह कबीर जो अजपा जपै, तिन को कॉल न खाई।।
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