*566 पछतायेगा पछताएगा फिर बेला हाथ नहीं आएगा 285।।
पछतावेगा पछतावेगा, फिर बेला हाथ न आवेगा।।
रतन अमोलक मिला ये भारी, कांच समझकर दीन्हा डारी।
पीछे खोजत फिरे अनाड़ी फिर कभी नहीं पावेगा।।
नदी किनारे बाग लगाया गाफिल सोवे ठंडी छाया।
चुनचुन चिड़िया सब फल खाया खाली खेत रहा बेगा।।
रेते का तु महल बनावे कर कर यतन सामान जनावे।
पल में बरखा आन गिरावे, हाथ मसल रह जावेगा।।
लगा बाजार नगर के माही सब ही वस्तु मिले सुखदाई।।
ब्रह्मानंद खरीदो भाई, बेगा दुकान उठावेगा।।
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