*63 काहे दूर जाए बंदे ईश्वर तेरे पास में। 21

काहे दूर जाए बंदे ईश्वर तेरे पास में।।

जमीन आसमान माही उसका मुकाम नाही।
परकट निशान नाहीं, जल थल वास में।।

जंगल पहाड़ भारे नदिया समुंदर सारे।
देख ले निहार प्यारे मिले ना तलाश में।।

नाभि में सौगंध भारी, फिरे मृग दूर चारी।
जाने बिना भेद भारी, सूंघत है घास में।।

फूलों में बॉस जैसे घट घट में वास ऐसे।
ब्रह्मानंद खास ऐसे, तन प्रकाश में।।



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