*186 दिखा दे यार अब मुखड़ा घूंघट में क्यों छुपाया है 73
दिखा दे यार अब मुखड़ा घुंघट में क्यों छुपाया है।।
हुस्न तेरे का है सानी ना दूजा बीच दुनिया में।
करूं क्या मैं सिफन तेरी चांद मन में लजाया है।।
नजारा प्रेम का भर के लगाया है जिगर मेरे।
जुदाई का अभी पर्दा बीच में क्यों गिराया है।।
तेरे मिलने की खातिर को हजारों लोग तरसावें।
खुले किस्मत बड़ी जिसकी वही दीदार पाया है।।
नहीं है आश इस तन की न धन की लालसा मुझको।
यो ब्रह्मानंद दे दर्शन यही दिल में समाया है।।
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