*105 भजन बिन भवजल कौन तरे 35

भजन बिन भवजल कौन तरे।।

काम क्रोध मद लोभ बसत हैं मार्ग में पकड़े।।

कुच कंचन दोऊ घेर पड़त हैं सब जग डूब मरे।।

यज्ञ दान तप निर्मल नौका अधविच टूट पड़े।।

ब्रह्मानंद करो हरि सुमिरन सब दुख दूर रें।।

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