*783 जग सपने की माया साधो।। 372।।

जग सपने की माया साधु जग सपने की माया।।

सोच विचार नर दिल अपने में,
         कौन है तू किस कारण इस दुनिया में। 
                         मनुष्य तन पाया है।।

नारी सुत बांधव मेरा है।नहीं तेरा है नहीं मेरा है।
       चिड़िया रैन बसेरा है अपने-अपने कर्म वश।
                          कोई जावत है कोई आया है।।

घर मंदिर माल खजाना है। 2 दिन का यहां ठहराना है।
        फिर आखिर तुझको जाना है कर अपने कर से।
                          शुभ कार्य जो परलोक सहाया है।।

चेहरे की सुंदरताई है थोड़े दिन की रुसवाई ह
फिर खाक में खाक मिलाई है सुमिरन कर हरी का निशदिन।                          दिन दिन छीजत यह काया है।।

यह झूठा सब संसारा है माया ने जाल पसारा है।
        क्यों फूला फिरे गवारा है ब्रह्मानंद रूप बिन।
                         जाने जन्म मरण भटकाया है।।

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