*468. नाथ तेरी माया जाल बिछाया 199
नाथ तेरी माया जाल बिछाया, इसमें सब जग फिरे भुलाया।।
कर निवास नो मास गर्भ में फिर भू तल में आया।
खानपान विषय रस भोगन मात-पिता सिखलाया।।
घर में सुंदर नारी मनोहर देख-देख ललचाया।
सुन सुन मीठी बात सुतन की मोह पास में फसाया।।
ग्रह काजन में निशदिन फिरते, सबरो जन्म बिताया।
आशा प्रबल भव मन भीतर निर्बल हो गई काया।।
पाप पुण्य संचय कर पुनः पुनः, स्वर्ग नर्क भटकाया।
ब्रह्मानंद कृपा बिन तुम्हारी मोक्ष नहीं कोई पाया।।
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