267 अब तुम दया करो महादेव जी।। 104

अब तुम दया करो महादेव जी कैलाश बसाने वाले।।

तन अंग भभूति रमाई सिर ऊपर जटा सुहाई।
गिरिराज सुता सुखदाई जी, निज अंग बिठाने वाले।।

कानन में कुंडल राजे मस्तक में चंद्र विराजे।
तन नाग विभूषण साजे जी, मृग  छाल बिछाने वाले।।

नरमुंड माल गल धारी, कर में त्रिशूल भयकारी।
नंदीगण पीठ सवारी जी, डमरू के बजाने वाले।।

गंगा नदी वेग अपारा, जब नभ से उतरी धारा।
तुम जटा बीच में डारा जी जल बूंद बनाने वाले।।

जब रावण ने तप किंहा, तब मनोवांछित फल दीन्हा।
तुम तीन लोक पति किन्हा जी, सब राज दिलाने वाले।।

तुम कामदेव तन जारा, त्रिपुरासुर मार विडारा।
सब दक्ष यज्ञ संहारा जी, गण सेन पटाने वाले।।

मुनि मारकंडे तपधारी, जब आयो शरण तुम्हारी।
यम पास पलक में टारी जी, तन अमर कराने वाले।।

तुम दीनबंधु व्रत धारी, निज भक्तन के हितकारी।
ब्रह्मानंद सकल भय हारि जी, सुखधाम पहुंचाने वाले।।



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