*302 बिना सत्संग के मेरे नहीं दिल को करारी है।। 124
बिन सत्संग के मेरे नहीं दिल को करारी है।।
जगत के बीच में आया मनुष्य की देह को पाकर।
फसाया जाल माया के, याद प्रभु की विसारी है।।
सकल संसार के अंदर नहीं, इक कार है कोई।
नजर में लाए कर देखा सभी मतलब की यारी है।।
किया जप नेम तप पूजन, फिरा ती रथ के धामों में।
न जाना रूप ईश्वर का, उमर सारी गुजारी है।।
फटे अज्ञान का पर्दा कटे सब कर्म बंधन के।
वह ब्रह्मानंद संतन का, समागम मोक्ष कारी है।।
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