*650 मनवा रे तज विषयों का संग 290।।

मनवा रे तज विषयों का संग।।
क्षणभंगुर सब वस्तु जगत में, ज्यों जल बीच तरंग।।
मृगतृष्णा जल क्यों भटकावे, जैसे मूढ कुरंग।।
पाप मैल भरा तन माही कैसे चढेगा रंग।।
ब्रह्मानंद सुमर जगदीश्वर, होय सकल भव रंग।।

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