*313 हरि दर्शन कि मैं प्यासी रे।।128
हरी दर्शन की मैं प्यासी रे।
मेरी सुनिए अरज अविनाशी रे।।
निर्गुण से मोहे शगुन सुहावे सुर नर मुनि गण जाम लगावे। भक्तन के सुख राशि रे।।
नहीं गोकुल नहीं मथुरा जाऊं अड़सठ तीरथ मैं नहीं जाऊं। चरण कमल के दासी रे।।
जब तक योग नहीं बन आवे कैसे प्रभु के मन भावे।
करो ना मुझे निरासी रे।।
करुणाकर मोहे दर्शन दीजिए ब्रह्मानंद शरण में लीजे
काटो यम की फांसी रे।।
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