*344 सतगुरु खोजो री प्यारी जगत में दुर्लभ रतन यही।।141
सतगुरु खोजो रे प्यारी जगत में दुर्लभ रतन यही।।
जिन पर मेहर दया सतगुरु की खून को दर्श दई।।
दर्श पाए सतलोक सिधारी, सतनाम पद कीन सही।।
सही नाम पाया सतगुरु से, बिना सतगुरु सब जीव बही।
जीव पड़े चोरासी भरमे, खान-पान मध्यमान लहीं।।
मान मनी का रोग पसरिया, बड़े बने जिनमार सही।
छोटा रहे चित् से अंतर, शब्द माही तब सूरत गई।।
शब्द बिना सारा जग अंधा, बिन सतगुरु सब भरम मई।
शब्द भेद और शब्द कमाई, जिन जिन किनहीं सार लहीं।।
शब्द रता सतगुरु पहचानो, हम यह पूरा पता दई।
खोलो आंख निकट ही देखो, अब क्या खोलूं खोल कहीं।।
आगे भाग तुम्हारा प्यारी, नेह परखो तो जून रही।।
कहना था सोई कह डाला, राधास्वामी खूब कही।।
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