*481 होली के खेल में गुमान ना कीजे।। 213
होली के खेल में गुमान ना कीजे ।।
जाओजी जाओ पियाघर अपने, तुम्हारो हसन मेरे तन छीजें।
पहले मारे प्रीत पिचकारी, खेल कहां अपनी बर खिंजे।।
गारे अबीर अपने को रखें, ऐसे लगर को कोन पतीजे।।
गागर भरे भिगोवत ओरन, मर्द बंधु जो सन्मुख भीगे।।
रे चित्चोर कहां मुंह मोड़े, लाख कहो कारो नहीं रीझे।।
आज हूं समझ महबूब गुमानी, नित्यानंद को भगवा दीजे।।
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