*266. ईश्वर तेरे दरबार की महिमा अपार है।। 103
ईश्वर तेरे दरबार की महिमा अपार है।
बंदा ना सके जान तेरा क्या विचार है।।
पृथ्वी जल के बीच में किस आश्रय खड़ी।
सूरज में चांद घूमते किसके आधार है।।
सागर नदी आंधी से सूरज डरे नहीं।
चलती हवा दिन रात में जीवन आधार है।।
फल फूल अन्न साग कंद मूल फल रस भरे।
रत दूध दही खानपान की बहार है।।
पीता है तुम दयालु तेरे बाल हम सभी।
ब्रह्मानंद तुझे धन्यवाद, बार-बार है।।
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