*311 दिला दे भीख दर्शन की।।128।।
दिला दे दर्शन की प्रभु तेरा पुजारी हूं।।
चलकर दूर दर्शन को तेरे दरबार में आया।
खड़ा हूं द्वार पर दिल में तेरी आस क हारी हूं।।
फिरूं संसार चक्कर में भटकता रात दिन व्यर्था।
बिना दीदार के तेरे मैं हमेशा दुखारी हूं।।
तू ही मात पिता बंधु तू ही मेरा सहायक है।
तेरी दासों के दासन का, चरण का सेवा कारी हू।।
भरा हूं पाप दोसौ से, क्षमा कर भूल की मेरी।
वह ब्रह्मानंद सुन विनती, शरण में मैं तुम्हारी हूं।।
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