*602 बंधन काटियो मुरारी मेरे यम के।।
बंधन काटियो जी मुरारी मेरे यम के।।
विषय जूरी मोहे बहुत सतावे, दुख देवें अति भारी जी।
या बेदन मेरी कैसे कटेगी कृपा बिना तुम्हारी जी।।
तुम तो हो दाता मेरे वेद धन्वंतरि, तुम ही मूल पंसारी हो जी।
तुमने छोड़ दाता मैं किस पर जाऊं, किसने दिखाऊं नाडी जी
गज और ग्राह लड़े जल भीतर, लड़ते-लड़ते हारी हो जी।
पल मैं तो बंधन तुमने गज के कांटे, छोड़ गरुड़ असवारी जी।
इंदर कोप चढ़े बृज ऊपर, जल बरसाया अति भारी जी।
नख पर गिरिवर ठाया मालिक ने, डूबत बृज बिहारी जी।।
द्रुपद सुता की तुमने लज्जा राखी चीर बढ़ाया भारी जी।
सूरदास पर दाता कृपा करियो, आ पड़ा शरण तुम्हारी जी।।
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