*503 गई जवानी बीत रहा क्यों सोता है।।

गई जवानी बीत रहा क्यों सोता है।
देख बुढ़ापा अब काहे को रोता है।।

 यह जन्म मरण का फेरा क्यों कहता अपना मेरा।
अब मरा मरा चिल्लावे जब बीमारी ने घेरा।
                              भजन नहीं होता है।।
सब जीवत के हैं साथी जो कहता मेरे मेरे।
ना कोई रोक सकेगा जब प्राण उड़ेंगे तेरे।
                           के जैसे तोता है।।
तूं मलमल के धोता है देख बाहरी तन को।
सत चेतन यह कहते हैं इस पापी मन को।
                           क्यों नहीं धोता है।।

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