*632 या कर्मा की रेखा टाली।।309।।

                         309
करमा की रेखा टाली रे नाही टले।।

गुरु वशिष्ठ से महावर ज्ञानी लिख लिख लग्न धरे।
सीता हरण मरण दशरथ का वन वन राम फिरे।।

लख घोड़ा लख पालकी रे सिर पर छत्र धरे। 
हरिश्चंद्र सत्यवादी राजा भंगी घर नीर भरे।।

कित फंदा पारखी रे , कित वो मृग चरे।
कित धरती का तोड़ा हो गया फंदे आन घिरे।।

माता सुभद्रा मामा कृष्ण बाबुल राज करें।
सिर पर पंजा श्री कृष्ण का अभिमन्यु आन मरे।।

तीन लोक होनी वश किन्हें होनी नहीं टले। 
कह कबीर सुनो भाई साधो फिर काहे सोच करें।।

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