*741 या काया कुटी निराली, जमाने भर से।।355।।

                                355
या काया कुटी निराली, जमाने भर से।
दस दरवाजे वाली, जमाने भर से।।

सबसे सुंदर आँख की खिड़की, जिसमें पुतली काली।।
सुनते श्रवन नासिका सूँघे,वाणी करै बोला चाली।।

लेना देना कर करते,पग चाल चलै मतवाली।। 
मुख के भीतर रहती रसना, सुस्वादो वाली।।

काम क्रोध मद लोभ आदि से, यह बुद्धि करे रखवाली।।
करके संग इंद्रियों का मन, यह बन बैठा जंजाली।।

इस क्रिया का नित्य किरायायह सांस चुकाने वाली।।
जन राजेश मोह मत करना, करना पड़ेगा ये खाली।।

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