*368 अजब है यह दुनिया बाजार।।156

अजब है यह दुनिया बाजार।
जिव जहां पर खरीदार है ईश्वर साहूकार।।

कर्म तराजू रेन दिवस दो पल्ले तोले भार।
पाप पुण्य के सौदे से ही होता है व्यापार।।

बने दलाल फिरा करते हैं, कामादिक बटमार।
किंतु बचते हैं जिनसे ज्ञानादिक पहरेदार।।

मिलकर थेली स्वास रतन की संभाली सौ बार।
कुछ तो माल खरीदा नगदी कुछ कर लिया उधार।।

भर कर जीवन नाव चले आशा सरिता के पार।
कहे बिंदु गर छिद्र हुआ तो डूबोगे मझधार।।

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