*250 हरि भजन बिना सुख नाही रे ।96

हरि भजन बिना सुख नाही रे। 
                          नर क्यों व्यरथा भटकाई रे।।
काशी गया दवारका जावे चार धाम तीर्थ कर आवे।
                              मन की मैल ना जाई रे।।
छाप तिलक बहू भांति लगाए सिर पर जट भभूति रमाए।                                   हिरदे शांति ना आई रे।।
वेद पुराण पढ़ें बहुत भारी, खंडन मंडन उम्र गुजारी।
                       वृथा लोक बडाई रे।।
चार दिवस जग बीच निवासा ब्रह्मानंद छोड़ सब आशा।
                         प्रभु चरणों चित लाई रे।।

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