*319 दौड़ सब मेटी है रे।। 131
दौड़ सब मेटी है रे सत्य नाम सब ठोड़।।
सच्चे गुरु से प्रीत लगी है दूजा रहा ना और।
जहां देखूं वहां आप ही दीखे, सतगुरु है सिरमोर।।
काम क्रोध लोभ मोह ममता, भरमगढ़ दिया तोड़।
राम नाम का अमला हंस रहा, पकड़े हैं मान मरोड़।।
शील संतोष ज्ञान दया भक्ति, ये सब में जी मोड़।
उने उभारे सोई जन उभरे, आन फंसे थे कुठोड़।।
घीसा संत करी गुरु कृपा खूब सुधारी ठोड़।
जन जीता की गइया पकड़ के, खींचा अपनी ओर।।
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