*699 नर कितनी कर चतुराई एक दिन मचे शहर में हल्ला।। 340।।
नर कितनी कर चतुराई एक दिन मचे शहर में हल्ला।।
झूठी सराय ठगों का मेला झूठी बाजी सब जग खेला।
झूठे गुरु का झूठा ही चेला, राम कहे ना अल्लाह।।
ठगनी एक पांच ठग न्यारे इस ठगनी से ब्रह्मा भी हारे।
तप करते श्रृंगी ऋषि मारे लूट लिया था सब गल्ला।।
मूर्ख नींद भरम की सोवे मूल को खोकर ब्याज भी खोवे।
मूंड पकड़ के रोवेगा रे तेरा यम तोड़ेंगे पल्ला।।
यह तन है तप के तपने का सोहन जाप गुरु जपने का।
गंगा दास गुरु अपने का कस के पकड़ लिए पल्ला।।
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