*265. मेरे मन बस गयो री, वह नटवर नंद का लाल।।103
मेरे मन बस गयो री, वह नटवर नंद का लाल।।
मैंने जग मस्तानी कहन लगा हे,
मेरे नीर नैन से बहन लगा हे।
कौन जाने मेरा हाल।।
घायल की गति घायल जाने,
मैं जाऊंगी जमुना किनारे।
जहां रास रचावे गोपाल।।
जब बाजे मेरे श्याम की मुरलिया,
छम छम नाचू में बांध के घुघरिया।
उठेंगी झंकार।।
मनमोहन मेरा श्याम सलोना,
कदे खेल कदे बन खिलौना।
उसने मोह लिया सब संसार।।
मैं सीता वो राम मेरा,
मैं मीरा वह घनश्याम मेरा।
मैं भोली वह भोलेनाथ।।
मोर मुकुट सिर पर चंदा,
मेरा ठाकुर वह मेरा गोविंदा।
के कर लेगा जग चांडाल।।
रामकिशन मन लाया करो,
रामनिवास गुण गाया करो।
करे कृष्ण बेड़ा पार।।
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