*308 दर्श बिन दुखन लागे नैन।। 126

दर्श बिन दुखन लागे नैन।।
जबसे तुम बिछूड़े प्रभु मेरे, कबहुं न पायो चैन।।
शब्द सुनत मेरी छतिया कांपे, मीठे लागे बैन।।
बिरह व्यथा कासू कहूं सजनी, बह गई करवत एन।।


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