*605 आवागमन मिटावै सद्गुरु।।274।।

आवागमन मिटावै सद्गुरु, आवागमन मिटावै।
ऐसा सद्गुरु जोयेे मेरे प्यारे, आवागमन मिटावै।।

काल जाल का भय नहीं व्यापै, औघट घाट लँघावै।
मकर तार की डोरी चढ़कर, सुन्न मण्डल ले जावै।।

जहाँ साईं की सेज बिछी है, हमको जाए लिटावै।
चार मुक्ति जहाँ चमटी करत हैं, माया कहीं न जावै।।
 
अचल विहंगम चाल चाल कर, धीमी चाल दिखावै।
रुनक झुनक जहाँ बाजे बाजैं, अनहद बीन सुनावै।।

नूर महल में नूर का दीपक, वहां ले जाए मिलावै।
हृदय दास ध्यान धरो नित, साँचा सद्गुरु मिल जावै


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