*290. तन मन के मिटें विकार जिसने पाया सत्संग सखी।। 120
तन मन के मीठे विकार जिसने पाया सत्संग सुखी।।
बिन सत्संग भरम ना टूटे काल जाल से कैसे छूटे।
वे लुटे अजब बहार।।
जप तप तीर्थ मूर्ति पूजा इनमें ही सारा जग उलझा।
रहा धोखे में संसार।।
बड़े बड़े पापी तारे सत्संग से जिनका मन रंगा हरि के रंग से।
हे उनका हुआ उद्धार।।
सत्संग वाणी अमृत वर्षा घट में अंतर्यामी दरशा।
हे उन्हें मिला करतार सखी।।
सतगुरु ताराचंद की वाणी रूपचंद मिटी खींचातानी।
हे खुल गया मोक्ष द्वार।।
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