*636 काहे बजाए शंख नगारे।।311।।

काहे बजाए शंख नगारे, काहे करे अजान रे।
ढूंढ सके तो ढूंढ़ ले तेरे, अंदर है भगवान रे।।

मृगा जैसे फिरे भटकता, चन्दन तिलक लगाएं तूँ।
हाथ मे माला कण्ठ दुशाला, सिर पर केश बढाए तूँ।
          गंगा काशी क्यों जाए,ये कहते वेद पुराण रे।।

सेवा करले सब जीवों की, निशदिन शीश झुकाले तूँ। 
देंगे ईश्वर तुझको दिखाई, मन को साफ बनाले तूँ।
        दीप ज्ञान का जला के मन में, मिटादे सब अज्ञान को।।

मोहमाया की चमक में कुछ भी, देता नहीं दिखाई रे।
बन्द आंख से देखले मन मे, परम् पिता की खुदाई रे।
      मन मन्दिर में बसे हैं तेरे, कर ले तूँ पहचान रे।।




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