*600 यमराज कहे दंड धारी।।
यमराज कहे दंड धारी सुन जीव तू बात हमारी।।
है भरतखंड जग माही, शुभ कर्म हों सुखदाई।।
तहां पाप किए मति मारी।।
विषयों में मन धर लीना, पल भर सत्संग नहीं कीना।
पशुऔ सम उम्र गुजारी।।
अब जा पीछे पछताए, तुझे जरा शर्म नहीं आए।
ब्रह्मानंद है भूल तुम्हारी।।
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