*567 साधो काल ने जाल फैलाया।।274।।

साधु काल ने जाल फैलाया।
लख चौरासी योनि में जीव रहा भरमाया।।

यह तो देश काल का है भाई जिसमें जीव फसाया
जगह-जगह पर काल की चौकी खींच खींच उलझाया।।

पीपल जांटी मंदिर पूजे, जा तीरथ पर नहाया।
जैसी कर ली आश जीव ने वैसा बाशा पाया।।

जंगम जोगी जपी तपि, काल रूप धर आया।
कर पाखंड फैल दिखा के नेति ठग ठग कर खाया।।

मकड़ी जैसा जाल बना है सुलझे नहीं सुलझाया।
ऐसे उलझे इस जाले में, सुझे नहीं उपाया।।

ब्रह्मा विष्णु शिव जी को भी काल में ग्रास बनाया।
दस अवतार ऐसे फांसी फिर विष्णु नहीं पाया।।

सतगुरु ताराचंद कहे वही बचेगा, जिस पर सतगुरु दया।
सूरत शब्द का साधन करके जिसने राधास्वामी गाया।।

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