*121 छोड़ मत जाइयो जी महाराज, मोहे वैरागन करके।। 49

छोड़ मत जाइयो जी महाराज, मोहे वैरागन करके।।
     म्हारे सद्गुरु ने ताल खुदाया, खूब खुदाई करके।
     नुगरे-२ खड़े लखावैं, सुगरे पी गए भर के।।
म्हारे सद्गुरु ने हाथी पाला, प्यार मुहब्बत करके।
कहे सुने की एक न मानी, चले सबन से डर के।।
     म्हारे सद्गुरु ने बाग लगाया, सींचा अमृत जल से।
     डाल-२पे मेवा लाग रही, देखी नैनां भर के।
म्हारे सद्गुरु ने महल चिनाया, झाँखी मोरी धर के।
नो दरवाजे सन्मुख दिखें, दसवां दिखै पढ़ के।। 
    दूर देश एक शहर बसत है, जो कोय देखै मर के।
    मीरा दासी पार उतर गई, गुरू के चरण पकड़ के।।


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