*717 कुबध ने छोड़ दे भाई।।

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कुबध ने छोड़ दे भाई, बदि ने छोड़ दे भाई।
लाख चौरासी भरमत भरमत मानस देह पाई।।

ध्रुव ने ध्यान लगाया हरि का, छोटे से ने भाई।
अटल पोलिया जाए बिठाया, साधु-संतों के माही।।

वरजे तैं भी मान्या कोन्या, हिरणाकुश अन्यायी।
खंभ पाढ हरी प्रकट हो गए, नहुवा दे विनसाई।।

श्री रामचंद्र की नार हरी थी, उस रावण ने भाई।
अंजनी के पुत्र हनुमान ने लंका ठोक जलाई।।

शिशुपाल ने रार  जगाई वा बरजे थी भौजाई।
कुंदनपुर के पाय गौरवे, मार धड़ाधड़ खाई।।

पूंजी माल विराना बरते, तनै देनी ना ठहराई।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, पकड़ा यम के जाई।।



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