*310 दर्श देख दिल में छिका।। 127

दर्श देख दिल में छीका संसार ना भावे।
भव सागर भयभीत फेर साहब न लावे।।

रोम-रोम रटना लगी महबूब सुहावे।
गूंगे ने गुड़ खा लिया फिर किसे बतावे।

गर्क हुए दीदार में कोई नहीं भावे।
मानसरोवर मिल गए जहां हंसा जावे।

प्रीतम की छवि कांच, क्या मस्तान कहावे।
जो पहुंचे उस देश में, उल्टा नहीं आवे।

अनहद उपजे गगन में संतो भगा गए।
आगम धाम के चौक की साहब फरमावे।।

न्युन नदी के रेत को नित्य शिखर चढ़ावे।
अमृत के दरयाव में आपे मिल जावे।।

पांच पच्चीस परपंच से मन पकड़ छुढ़ावे।
सन्मुख बैठा नूर के अनुभव गुण गावे।

सुने गर्ज ब्रह्मांड की जम दंड उठावे।
अधर धार उतार के आसन से लावे।।

स्वामी गुमानी दास जी पारस पर सावे।
कंचन कर कर मोए को दीदार दिखावे।

तेज पुंज जगमग करे सुखसागर पावे।
नितानंद घर अमरपुर सतगुरु पहुंचावे।।

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