*6 गुरु जी थारी महिमा न्यारी है।। २
गुरु जी थारी महिमा न्यारी है।
नेति नेति कहे वेद की बोनी हारी है।।
अंतर सृष्टि रखते गुरुवर ऐसे तप धारी हैं।
जिज्ञासु है तू अवतरे गुरु कल्याणकारी है।।
माया ठगनी जाल बिछाया, ठगी सृष्टि सारी है।
गुरु तत्व तक पहुंचे नहीं वह सो में खिलाड़ी है।।
ज्ञाता ज्ञेय अज्ञान अगम से यो परसे पारी है।
तत्व वशी महायज्ञ गुरु फुलवारी है।।
ब्रह्म गुरु का बना है मंदिर तत्व रुखारी हैं।
ओहम सोहम का मार्ग सीधा निरंतर जारी है।।
गुरु आत्मानंद अखंड सुख स्वामी अब मर्जी थारी है।
भूमानंद की सुनो विनती चरणों का पुजारी है।।
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