*487 मैं प्यासा पपैया हूं गुरु जल की बूंद पिला।। 217

मैं प्यासा पपैया हूं, गुरु जल की बूंद पिला।।

आशा तृष्णा का डेरा, गुरु घायल है मन मेरा।
एक बार लगा दो फेरा, मुझे इन से मुक्ति दिला।।

यह विकार बड़े अन्यायी, खड़े खंजर लिए कसाई।
जैसे सदना की गऊ चुराई, आपे में लिया मिला।।

माया का बोल सुगंधी, हिये देखे आंख हुई अंधी।
तुम इनको बना लो बंदी, सत्संग का खोल किला।।

गुरु रविदास मेरे दाता, हैं मेरे भाग्य विधाता।
चंद तेरे ही गुण गाता मुझे तेरा नाम मिला।।

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