*213 हरि हर जप ले बारंबार अब तूने जन्म अमोलक पाया।। 83

हरि हर भज ले बारंबार, अब तूने जन्म अमोलक पाया।।
काल बली तुझे कभी ना छोड़े, समझे क्यों ना गवार।।

साहब संगी हैं बहुरंगी, सौ तने दिए बिसार।
सोंटे की बाजी मत भूले, पड़ेगी यम की मार।।

भाईबंध और कुटुंब कबीला यह सब सिर पर भार
चलती बेरिया कोई ना तेरा बिन हरि सर्जन हार।।

जगत भोग और मान बड़ाई मन से दूर उतार।
चले सवेरा उतसी डेरा, कर ले मीत मुरार।।

प्रेम नगर व्हिच पेंठ लगी है सौदा करो विचार।
नित्यानंद महबूब गुमानी, कर निर्भय दीदार।।

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