*103. दया सिंधु दातार।। 35
दया सिंधु दातार मदद कर मेरी।
मैं अबला बल हीन ओट लई तेरी।।
कैसे गुण तुम गाऊं, काल लेई घेरी।
तुम समर्थ दीनदयाल काट जम बेड़ी।।
कोऊ साहू नहीं, सकल जगत वेरी।
कैसे करूं भव पार धार अति गहरी।।
मैं आया तुम दरबार टेर सुनो मेरी।
मोहे अपने चरण लगाओ करी क्यों देरी।।
मैं अवगुण की खान चरण की चेरी।
मेरे अवगुण करके माफ मिटा भव फेरी।।
साहब खूबी राम करो अब, मेहर सवेरी।
छूटे जग जंजाल, यह विप्त घनेरी।।
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