*437. इस मोह माया की धार में कोई बिरला संत तरेगा।।188।।
इस मोह माया की धार में कोई बिरला संत तरेगा।।
रावण जैसे पंडित फहगे, बड़े बड़े ज्ञानी चंद भी बहगे।
दुर्वासा मझधार में क्यों जप तप और योग करेगा।।
आशा तृष्णा ममता माया मिल पांचों संग जाल फैलाया।
पच्चीस के परिवार में तू फंदे बीच फंसेगा।।
न्हावे तो नहा निर्मल जल में, मूरख आप फंसा दलदल में।
गर्भ गुमानी कार में तेरा कैसे रूप खिलेगा।।
अरे पगली तेरा ध्यान कड़े सै, कित ढूंढ है भगवान कड़े सै।
सत्संग शील विचार के कोई आवागमन तरेगा।
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