*229. अखियां हरी दर्शन की प्यासी।। 89

अखियां हरी दर्शन की प्यासी।।
देखा चाहे नैन कमल को हरदम रहत उदासी।
केसर तिलक मोतियन की माला वृंदावन के वासी।।
नेह लगाए त्याग गए तृण सम, डाल गए गल फांसी।।
काहू के मन की को जानत, लोगन के मन हांसी।।
सूरदास प्रभु थारे दरस बिन, लेहूं करवट कासी।।

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