*544. मत सोना मुसाफिर नींद भरी।।244

मत सोना मुसाफिर नींद भरी।।

तुम परदेसी भूल पड़े हो यह सब चोरों की नगरी।।
      पल पल छिन छिन तक लगावे चंपत माल चुरा नगरी।।
लोग लुटाए गए बहुतेरे बिरला जाय बचा सफरी।।
      ब्रह्मानंद करो सब तैयारी रैन बिताय दई सगरी।।

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