*109. राम तेरी रचना अचरज भरी।। 38
राम तेरी रचना अचरज भारी।
जाको वर्णन कर सब हारी।।
जल की बूंद से देह बनाई, ता में नर और नारी।
हाथ पाव सब अंग मनोहर भीतर प्राण संचारी।।
नभ में नभचर जीव बनाए जल में रचे जलधारी।
वृक्ष लता वन पर्वत सुंदर सागर की छवि न्यारी।।
चांद सूरज दो दीपक किनहे रात दिवस उजियारी।
तारागढ़ सब फिरे निरंतर चहुं दिशि पवन सवारी।।
ऋषि मुनि निशदिन धामणगाव में रखना सके गति सारी।
ब्रह्मानंद अनंत महाबल ईश्वर शक्ति तुम्हारी।।
Comments
Post a Comment