*258. हर में हरी को देखा।।101
हर में हरी को देखा।।
आप माल और आप खजाना आप ही खर्चन हारा।
आप गली-गली दिशा मांगे लिए हाथ में प्याला।।
आप ही मदिरा आप ही भट्टी आप चूवावन हारा।
आप सुराही आपे प्याला आप फिरे मतवाला।।
आप ही नेना आप ही सेना आप ही कजरा काला।
आप गोद में आप खिलावे आप ही मोहन बाला।।
ठाकुरद्वारा ब्राह्मण बैठा मक्का में दरवेशा।
कहे कबीर सुनो भाई साधो हरि जैसे को तैसा।।
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