*303 अगर है प्रेम दर्शन का भजन से प्रीत का प्यारे।।125
अगर यह प्रेम दर्शन का भजन से प्रीत कर प्यारा।।
छोड़कर काम दुनिया के रोक विषयों से मन अपना।
जीतकर नींद आलस को रहो एकांत में प्यारा।।
बैठ आसन जमा करके त्याग मन के विचारों को।
देख भृकुटी में अंदर से चमकता है अजब तारा।।
कभी बिजली कभी चंदा कभी सूरज नजर आवे।
कभी फिर ध्यान में भाशे धर्म ज्योति का चमकारा।।
मिटें सब पाप जन्मों के कटे सब कर्म के बंधन।
वो परमानंद में हो के लिए मन छोड़ संसारा।।
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