*329 नाम निरंजन गाओ साधो।।134

राम निरंजन गाओ साधु नाम निरंजन गाओ रे।।

मानस देही मिली दुर्लभ काहे व्यर्थ गवाओ रे।।
नाम जहाज बैठकर दुष्कर भवसागर तर जाओ रे।।

घर की जीभ नाम बिन दाम फिर क्यों देर लगाओ रे।
उठत बैठत सोवत जागत मन से नहीं बिसराओ रे

ध्रुव प्रहलाद विभीषण नारद सनकादिक मन भाओ रे।
अजामिल गज गणिका तारे दृढ़ निश्चय मन लाओ रे।।

कलयुग केवल नाम अधारा दूजा भ्रम भुलाओ रे।
ब्रह्मानंद नाम बिन हरी के कभी मोक्ष नहीं पाओ रे।।

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