*108. गुरु बिन कौन मिटावे भव दुख गुरु बिन कौन मिटावे।। 36

गुरु बिन कौन मिटावे भव दुख गुरु बिन कौन मिटावे।।

गहरी नदिया वेग बड़ा है बहत जीव सब जावे रे।
कर कृपा गुरु पकड़ भुजा से खींच तीर पे लावे रे।।

काम क्रोध मद लोभ चोर मिल लूट लूट के खावे रे।
ज्ञान खड़क देकर कर भारी सबको मार भगावे रे।।

जाना दूर रात अंधारी गैला नजर ना आवे रे।
सोवे मार्ग पर भगदड़ कर सुख से धामपुर जावे रे।

तन मन धन सब अर्पण करके जो गुरुदेव रीझावे रे।
ब्रह्मानंद भवसागर दुष्कर जो सहजे तर जावे रे।।

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