*130 मैने गुरु मिले रविदास।। 53
मैंने गुरु मिले रविदास सासरे मैं ना जांगी।।
एक बेल के दोय तुमबड़ी एक ही उनकी जात।
एक फिरे गलियों में डुलती, एक संतो के हाथ।।
एक झुंड के दो सरकंडे एक ही उनकी जाति।
एक के बनते खरी खरी में एक कलम धनी के हाथ।।
एक मिट्टी के दो बर्तन भाई एक ही उनकी जात।
एक में घलता माखन मिश्री एक धोबी के घाट।।
आए गए कि पनिया गांठे, बैठा सरे बाजार।
भूखे ने दो रोटी देता जिसकी जाति चमार।।
काख में से रापी काढ़ी,चीरा अपना गात।
चार जन्म के चार जनेऊ, आठ गांठ नो तार।।
अपने महल से मीरा उतरी घाट में गंगा नहाए।
पांव पूजूं गुरु रविदास के अमरलोक ने जाए।।
Comments
Post a Comment